EXPLAINER : क्‍या Rahul Gandhi को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के लिए रचा गया राजस्‍थान का सियासी नाटक, यह संयोग है या प्रयोग

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  लेखक: कुलदीप सिंह

दिल्‍ली। राजस्‍थान में कांग्रेस अपने संकट और मंथन काल में है। अब आने वाले दिनों में कांग्रेस की दशा और दिशा क्‍या होगी यह आने वाला वक्‍त बताएगा। हो कुछ भी, लेकिन एक बात तो साफ है कि 2024 में कांग्रेस की राह अब आसान नहीं है। सबसे पहला सवाल तो पार्टी और संगठन को लेकर है। Rahul Gandhi के अध्‍यक्ष न बनने के फैसले के बाद कांग्रेस पार्टी टूटने की कगार पर आ गई। एक ओर राहुल गांधी कन्‍याकुमारी से कश्‍मीर तक भारत जोड़ो कैंपेन चला रहे हैं। तो वहीं कांग्रेस पार्टी के अंदरखाने ही बंटवारे जैसी स्थिति हो गई है। 

संकट काल में है कांग्रेस पार्टी 
हालत यह है कि राजस्थान में अगले साल चुनाव है, लेकिन गुटबाजी थम नहीं रही है। पंजाब में पहले से ही दुर्गति है। छत्तीसगढ़ में टीएस सिंह देव भी Sachin Pilot के रास्ते पर हैं। कर्नाटक, बिहार, बंगाल में भी पार्टी धरातल खो चुकी है। पूर्वोत्तर हाथ से निकल चुका है। 2024 नजदीक है।
राजस्‍थान में गहलोत और सचिन पायलट के बीच जो सियासी नाटक चल रहा है। उसका अंत कैसे होगा, इस पर अटकलें लगाईं जा रही हैं। कहा जा रहा है कि Ashok Gehlot कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ेंगे, तो वो ही सीएम बने रहेंगे।
ऐसे में सचिन पायलट के अरमान भी धूमिल हो जाएंगे। वहीं, कांग्रेस अध्‍यक्ष पद का चुनाव तो क्‍या राहुल गांधी ही लड़ेंगे। यानि इस सियासी नाटक से राहुल गांधी के सामने जो भी विरोध की आवाजें उठ रहीं थी वो थम जाएंगी। और कांग्रेस संगठन एक बार फिर गांधी परिवार की शरण में ही जाएगा। एक्‍सपर्ट की मानें तो हालात तो कुछ ऐसे ही बन रहे हैं। 

गांधी परिवार के इतर कुछ नहीं 
कांग्रेस पार्टी के टूटने और फिर गांधी परिवार की शरण जाने का इतिहास पुराना  है। कांग्रेस में जब गांधी परिवार के इतर सियासी समीकरण बने तब ऐसे हालात जरूर बने। पहली बार 1969 में जब निजलिंगप्पा ने इंदिरा गांधी को पार्टी से निष्कासित कर दिया। तब इंदिरा ने कांग्रेस (आर) बना लिया और 1971 की जीत के बाद कांग्रेस (ओ) खत्म हो गई। दूसरी बार 1978 में जब इमरजेंसी और संजय गांधी के हस्तक्षेप से आहत होकर पार्टी प्रेसिडेंट कासु ब्रह्मानंद रेड्डी ने इंदिरा को बाहर का रास्ता दिखाया। इंदिरा ने कांग्रेस (आई) बनाई और बाद में फिर वही हुआ। दूसरा वापस आ गया। और विरोध खत्‍म हो गया। 

कई बार टूट चुकी है कांग्रेस 
इतिहास को देखे तो कांग्रेस में संगठन और सरकार की जिम्‍मेदारी गांधी परिवार के आसपास ही रही है। जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री भी रहीं और पार्टी प्रेसिडेंट भी। गांधी परिवार के अलावा पट्टाभि सितारमैया (1948-49), पुरुषोत्तम दास टंडन (1950), यूएन धेबर (1955-59), नीलम संजीव रेड्डी (1960-63), के कामराज (1964-67(, एस निजलिंगप्पा (1968-69), जगजीवन राम (1970-71), शंकर दयाल शर्मा (1972-74), देवकांत बरूआ (1975-77), पीवी नरसिंह राव (1992-94) और सीताराम केसरी (1996-98) भी पार्टी अध्यक्ष रहे लेकिन नरसिंह राव को छोड़ बाकियों के समय बतौर पीएम गांधी परिवार की पकड़ मजबूत रही। 

फिर 360 डिग्री घूमे समीकरण 
हालांकि, लाल बहादुर शास्त्री के समय कामराज अध्यक्ष थे। नरसिंह राव और केसरी के साथ कैसे पार्टी गुटबाजी की शिकार हुई यह किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में अध्‍यक्ष पद की सुई फिर गांधी परिवार के पास जाकर ही ठहर जा रही है। यानि हो सकता है कि भारत जोड़ो यात्रा के बीच में राहुल गांधी अपना फैसला बदल सकते हैं। अब प्‍लानिंग का हिस्‍सा है या फिर हालात कुछ ऐसे बन रहे हैं कि कांग्रेस फिर 360 डिग्री घूमकर उसकी मुहाने पर आ गई है। जहां से वह चली थी। 

दोनों दिग्‍गज आ गए दिल्‍ली 
अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच आर-पार की लड़ाई ठन गई है। पर सूत्रधार कौन है? राजस्‍थान में विधायक दल की बैठक न होना, फिर उसे पायलट के बगावती तेवर कुछ अलग कहानी कह रहे हैं। ऐसे में किरकिरी के बाद अशोक गहलोत और सचिन पायलट को दिल्‍ली बुलाया गया है। वहीं, कांग्रेस अध्‍यक्ष पद के चुनाव के लिए 30 सितंबर तक नामांकन दाखिल करने की तारीख है। 17 अक्टूबर को चुनाव होने हैं और 19 को रिजल्ट आएगा। अब कांग्रेस में आने वाला कैनवास होगा यह देखने वाली बात होगी।

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